Gita Gyana Yagna, Lucknow

गीता ज्ञान यज्ञ, लखनऊ

प्रवचन का विषय

  वेदान्त मिशन, लखनऊ द्वारा दि. २ से ९ मार्च तक पू. गुरूजी स्वामी आत्मानंदजी के गीता ज्ञान यज्ञ का आयोजन लखनऊ के लालबाग में स्थित हरि ॐ मंदिर में किया गया। इस यज्ञ में पूज्य गुरूजी ने सायं के सत्र में गीता के ११ वें अध्याय 'विश्वरूप दर्शन योग' पर तथा प्रात: के सत्र में मुण्डकोपनिषद के दूसरे मुण्डक के दूसरे खण्ड पर प्रवचन कियें ।
    पूज्य गुरूजी ने प्रतिदिन प्रात: ६. ३० बजे से चिनहट में स्थित गीत-माधव फार्म में योगाभ्यासी युवा वर्ग के लिए अष्टांग योग साधना पर विशेष प्रवचन कियें। इस कार्यक्रम में युवावर्ग ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।

समापन कार्यक्रम

    हरि ॐ मंदिर के द्वारा वेदांत मिशन द्वारा आयोजित प्रत्येक ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन विशेष भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस यज्ञ के अंतिम दिन भी दि. ९ मार्च को प्रवचन के पश्चात् भंडारे का आयोजन किया गया।
    यज्ञ के सुबह के सत्र का समापन होली के दिन हुआ। होली के उपलक्ष में सभी भक्तों ने पूज्य गुरूजी के ऊपर पुष्पों की वर्षा करके पुष्प होली खेली तथा पूज्य गुरूजी से होली के आशीर्वाद प्राप्त कियें।

"निमित्तमात्रं भव"

    पूज्य गुरूजी ने गीता के १० वें अध्याय के अन्त में जो बताया कि यह समस्त जगत हमारे एक ही अंश में स्थित है। इसे सूत्र की तरह लेकर ११वें अध्याय की भूमिका बनाई। भगवन को किसी एक रूप में सिमित नहीं देखना चाहिए किन्तु सम्पूर्ण जगत ईश्वर रूप ही है।
    भगवान ने अर्जुन को देशकाल को संकुचित करके यह दिखाया कि समस्त जगत उनमें ही समाया हुआ है। अपने ही अंदर जगत के उत्पत्ति, स्थिति तथा प्रलय तीनों को दिखा दिया। जो ईश्वर का ईश्वरत्व इस प्रकार से देख पाता है, वह जगत में सुंदरता देख पाता है। समस्त जगत को ईश्वरत्व से युक्त देखना ही विश्वरूप दर्शन है। भगवन के द्वारा अपने विकराल, सौम्य अदि विविध रूपों को दिखाने पर अर्जुन और भी शरणागति को प्राप्त हुआ। शरणागत अर्जुन को भगवन ने एक विशेष उपदेश दिया कि 'निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन'। "हे अर्जुन! तुम हमारे निमित्त बनकर अपने धर्म का पालन करों।"

"पश्य मे योगमैश्वरम्"

Sundarkand Monthly Satsang

23 Feb 2020

सुन्दरे सुन्दरी सीता, सुन्दरे सुन्दरी कथा।
सुन्दरे सुन्दरी वार्ता, सुन्दरे किं न सुन्दरम् ।।

सुन्दरकाण्ड मासिक सत्संग

वेदांत आश्रम में दिनांक २३ फरवरी २०२० से पूज्य गुरूजी स्वामी आत्मानंदजी द्वारा सुंदरकांड के मासिक प्रवचनों का शुभारम्भ हुए। पहले प्रवचन में सुंदरकांड के नाम की महिमा और विषय की चर्चा हुई। उसके बाद पहले श्लोक का अर्थ का चिंतन हुआ। अंत में सबने आरती कर प्रसाद ग्रहण किया।

सुन्दरे किं न सुन्दरम्

पूज्य गुरूजी ने सुन्दरकाण्ड नाम की महिमा बताई। अन्य समस्त अध्यायों की तरह इस अध्याय का नाम न तो किसी अवस्था का सूचक है और ना ही किसी स्थान को द्योतित करता है। इस नाम महिमा को महर्षि वाल्मीकिजी से आरम्भ करे अन्य समस्त रामायण ग्रन्थ के रचयिताओं ने स्वीकार किया हैं। इसी अध्याय में हनुमानजी का सुन्दर चरित्र सामने आता है। हनुमानजी को अपने दिव्य सामर्थ्यों का ज्ञान इसी काण्ड के आरम्भ में महा ज्ञानी जाम्बवंतजी के द्वारा कराया जाता है। हनुमानजी की समुद्र के इस पार सुन्दर भूधर से तलाश की यात्रा आरम्भ होती है, जिसका पर्यवसान सुन्दरतम शांति स्वरूपिणी सीताजी के दर्शन में होता है। हनुमानजी की यह यात्रा एक अध्यात्म यात्रा के सामान है, इसमें उन्हें वे सभी विघ्न प्राप्त होते है, जो एक अध्यात्म यात्रा के दौरान संभावना होती है। इसलिए अध्यात्म साधक के लिए विदेश प्रेरणादायी सिद्ध होती है।
इसके अलावा भक्त विभीषणजी की शरणागति का प्रसंग प्राप्त होता है, तथा प्रभु के विशेष गुण शरणागत वत्सलता का भी द्योतन होता है। इन अनेकों कारणों से ये कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सुंदरे किं न सुन्दरं।

प्रवचन का आरम्भ

प्रवचन का आरम्भ में दास बगीची भजन मंडली के सुन्दर भजनों की प्रस्तुति, हनुमान चालीसा का पाठ तथा राम नाम संकीर्तन किया गया। उसके उपरांत पूज्य गुरूजी का प्रवचन तथा अंत में हनुमानजी की आरती और प्रसाद वितरण हुआ। यही क्रम प्रति माह के अंतिम रविवार के सत्संग में अनुसरण किया जाएगा। इसके साथ ही पूज्य गुरूजी ने आगे के मासिक सत्संग की तारीख २९ मार्च की घोषणा की। सुन्दरकाण्ड के पाठ की महिमा तो अत्यंत प्रचलित है, किन्तु उसके गहन अर्थ को जानने पर उसकी और भी महिमा समज में अति है।

सुन्दरे सुन्दरी कथा

Vedanta Camp, Indore

२२ फरवरी २०२०

वेदांत शिविर

वेदांत आश्रम, इंदौर में दि. १६ से २१ फरवरी तक एक वेदांत शिविर का आयोजन किया गया। इस 'शिविर हेतु लख़नऊ, मुंबई तथा अन्य शहरों से शिविरार्थियों ने भाग लिया। सभी शिविरार्थियों का १५ फरवरी की शाम तक आगमन हुआ। शिविर कै विषय ईशावास्य उपनिषद्, गीता कै ७ वे अध्याय पर प्रवचन तथा शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ रहा। इसके आलावा प्रतिदिन प्रातः ध्यान तथा श्री गंगेश्वर महादेव का अभिषेक कराया जाता था।

शिविर का शुभारम्भ १६ फरवरी के प्रातः ६ बजे से ध्यान की कक्षा से हुआ। दिन का आरम्भ स्वामिनी समतानंदजी द्वारा ध्यान की कक्षा से होता था। इसमें पू. स्वामिनीजी ने ईशावास्य  उपनिषद् पर आधारित ध्यान करना सिखाया। ध्यान विषयक मार्गदर्शन प्राप्त कर सभी आत्मविश्वास और धन्यता से युक्त हुए। इसके आलावा पू. स्वामिनीजी ने शिवपाराध क्षमापन स्तोत्र की chanting करनी सिखाई। इस सत्र में सब शिविरार्थी बालवत होकर पाठ करता था। इससे संस्कृत श्लोकों का स्पष्टता से उच्चारण करना  सिखाया गया। इस वजह से संस्कृत पढ़ने और समझने का भय समाप्त होता हुआ दिखा। उसके पश्चात् स्वामिनी पूर्णानन्दजी द्वारा श्री गंगेश्वर महादेव का अभिषेक कराया जाता था। पू. स्वामिनीजी ने पूजा का महत्व, विधि तथा उसके पीछे भावना का समावेश को सुंदररूप से बताया।

तत्पश्चात पूज्य गुरूजी द्वारा ईशावास्य उपनिषद् पर दो कक्षाएँ  होती थी। ईशावास्योपनिषद शुक्ल यजुर्वेदीय है। इस उपनिषद् में एक holistic approach दिखाई देता है। उपनिषद् का प्रारम्भ सब कुछ ईश्वर के द्वारा ही व्याप्त है - इस सुंदर वेदान्तिक तथ्य के प्रतिपादन से होता है।  मुक्ति तो ज्ञान से ही होती है, किन्तु ज्ञान का प्रसाद तो तब ही प्राप्त हो सकता है जब मन की पात्रता हो। उसके लिए ज्ञान में प्रवेश के पूर्व कर्म  उपासना का समुच्चय परम अवश्य है। अत: कर्म और उपासना के रहस्यों का प्रतिपादन किया गया है। और अंततः मृत्यु के समय की बहुत ही दिव्य हृदयस्पर्शी प्रार्थना और दृष्टि प्रदान की गई। इसे श्रवण करके प्रत्येक शिविरार्थी लाभान्वित हुआ।

सायं के सत्र में पू. स्वामिनी अमितानंदजी के द्वारा गीता के सातवें अध्याय ज्ञान विज्ञान योग पर प्रवचन किये गए। ज्ञान अर्थात बौद्धिक समज तथा विज्ञान अर्थात इस समज को हृदयान्वित करते हुए इस ज्ञान को अपना बनाना। ज्ञान से विज्ञान की यात्रा में व्यवधान अपने बारे में, दृश्य जगत के बारे में मोह का होना है।
अतः उसके रहस्य का ज्ञान तथा स्वरुप को समजने के लिए भगवान ने अपनी परा और अपरा प्रकृति का परिचय दिया कि इन्हीं  प्रकृति के माध्यम से इस जड़ - चेतन जगत रचना करते हैं। हम ही उन सब को अनेकों मणियों में के सूत्र की तरह व्याप्त करते हैं।  इस विज्ञानं की सिद्धि के लिए मोह के स्वरुप को बता कर उससे मुक्ति का तरीका भगवान ने बताया।

सायं श्री गंगेश्वर महादेव की आरती के पश्चात् रात्रि भोजन होता था। दिन का समापन सुन्दर भजन प्रस्तुति, स्तोत्रपाठ तथा प्रश्नोत्तर के कार्यक्रम से होता था।  प्रत्येक शिविरार्थी सभी कार्यक्रमों में बहुत उत्साह के साथ सम्मिलित होता था। २१ फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन प्रातः समापन का कार्यक्रम रहा।
इसमें प्रत्येक शिविरार्थी ने धन्यता के साथ अपने शिविर के अनुभवों को प्रस्तुत कियें। अंत में व्यास पीठ की पूजा के साथ गुरु दक्षिणा का कार्यक्रम संपन्न हुआ। 

महाशिवरात्रि पर्व

महाशिवरात्रि का दिन स्वामिनी अमितानंदजी और स्वामिनी पूर्णानन्दजी के संन्यासदीक्षा का दिन होता है। अतः प्रथम पूजा तथा अभिषेक उनके द्वारा किया गया। शिविर समापन तथा गुरुदक्षिणा के कार्यक्रम के उपरांत अन्य पहरों की श्री गंगेश्वर महादेव की पूजा तथा रुद्राभिषेक शिविरार्थियों द्वारा सामूहिक रूप से की गई। गंगेश्वर महादेव की सुन्दर झाँकी सजाई गई। महादेवजी के दर्शन हेतु देर रात तक भक्तों का ताँता बना रहा। कई साधकों ने पूरी रात जगकर जप और ध्यान की साधना की। धन्यता और भक्तिसभर वातावरण में २२ फरवरी को शिविरार्थियों ने प्रस्थान किया।

Sundarkand Path, Indore

19 Jan 2020 :

After the completion of Monthly Hanuman Chalisa Satsangs, now in its place monthly Satsang on Sunderkand is being started - on the last Sunday of every month. Today on 19th Jan, the beginning was made with the Akhand Path of Sunderkand - by the Daas Bagichi Ramayan Mandal. The first Sunderkand Satsang is on 23rd Feb.

ॐ तत्सत्

Gita Gyan Yagna, Lucknow

6th to 13th Jan

वेदांत मिशन, लखनऊ के द्वारा 6 से 13 जनवर तक लखनऊ के 'हरि ॐ मंदिर' में पूज्य स्वामिनी समतानंदजी का गीता ज्ञान यज्ञ आयोजित हुआ। इस ज्ञान यज्ञ में पूज्य स्वामिनीजी ने सायंकालीन सत्र में गीताजी के 5वें अध्याय पर और प्रातःकालीन सत्र में दृग दृश्य विवेक पर प्रवचन किये।

P. Guruji Swami Atmananda Saraswatiji

'कर्म संन्यास योग' नामक गीताजी के पाँचवे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण इस रहस्य को उद्घाटित करते हैं कि यद्यपि संन्यस्त होकर मुक्त हो जाना मनुष्य का परम लक्ष्य है लेकिन कर्म योग को जीवन में पूरी समग्रता से धारण करने से ही संन्यास का मार्ग प्रशस्त होता है। 'दृग दृश्य विवेक' वेदान्त के इस सुंदर प्रकरण ग्रंथ में दृष्टा और दृश्य का विवेक कराके अपने ब्रह्म स्वरूप में जगने तक की पूरी यात्रा और प्रक्रिया बताते हैं।

अत्यंत तीव्र शीत लहर के बावजूद अनेकों भक्तों ने अपने घर के cozy वातावरण से बाहर निकलकर इन दोनों विषयों का लाभ लिया। ज्ञान यज्ञ का समापन हरि ॐ मंदिर द्वारा आयोजित भंडारे से हुआ।

Gita Gyana Yagna, Vadodara

5th to 11th Jan

वड़ोदरा के सुभानपुर विस्तार में स्थित आत्मा-ज्योति आश्रम में पू. स्वामिनी अमितानंदजी के गीता ज्ञान यज्ञ का आयोजन दि. ५ से ११ जनवरी तक किया गया। इस यज्ञ में पू. स्वामिनीजी ने सायं के सत्र में गीता के १० वें अध्याय विभूति योग पर तथा प्रात: के सत्र में कठोपनिषद के दूसरे अध्याय की तीसरी वल्ली पर प्रवचन किएं। पूर्व ६ सत्रों से चल रहे इस उपनिषद् का इसके साथ ही समापन हुआ।

P. Guruji Swami Atmananda Saraswatiji

यज्ञ का श्रीगणेश आत्म-ज्योति आश्रम के ट्रस्टी श्री नारायण भाई तथा सु श्री इंदिरा बेन शाह के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन तथा व्यासपीठ की पूजा से हुआ। यज्ञ के एक दिन पूज्य स्वामिनीजी ने आत्म-ज्योति आश्रम द्वारा संचालित योगासन की कक्षा के ८० साधकों के लिए प्रवचन किया। इस सत्र में पूज्य स्वामिनीजी ने अष्टांग योग का परिचय प्रदान कर के उसके महत्वपूर्ण अंग 'ईश्वर प्रणिधान' सूत्र पर चर्चा की।

गीता के १० वे अध्याय में भगवान ने अपनी सुन्दर विभूतियों का वर्णन करते हुए व्यक्त को देखकर अव्यक्त की awareness, जगत को देखते हुए जगदीश्वर की महिमा की awarness जगाने का सन्देश दिया। कठोपनिषद में यमराज ने नचिकेता को मृत्यु का रहस्य बताते हुए जन्म मृत्यु से परे स्थित परमात्मा को अपनी अंतरात्मा की तरह reveal किया।

8th Anand-Lahari : 2019

ANAND-LAHARI

29th Dec 2019

ANAND-LAHARI

Anand-Lahari is a Musical Fest Program organized by Indian Cultural Foundation to raise funds for its charitable work of propagating the message of Vedanta. This was the eighth edition of Anand-Lahari. 

 

This year the program was organized on 29th Dec evening from 7.00 PM onwards at the Balgandharwa Rang Mandir at Bandra. It is a nice auditorium. The program began with the compering by Lata Subraidu. She welcomed everyone and then invited Manasi Kulkarni to chant invocation shlokas of Ganeshji. Later began the first show of the evening. It was a dance show called Bhater-Bhitar which was based on the teachings of Sant Kabir Dasji. This was presented by Samyukta Wagh and her group.
Then the Managing Trustee of the ICF, Sh Avinash Datta briefly told the audience about the activities of ICF and then requested the Founder-Chairman of ICF Swami Atmanandaji to bless the audience and participants. Poojya Guruji in his bried address introduced the Trustees of ICF and called them on the stage one by one. He also talked about the ageless message of Vedanta and showed how it percolates the fabric of this country. 
 
In the second half was a musical program by Shruti Viswanath. This was also a lovely session. 

Gita Gyana Yagna, Mumbai

22nd to 28th Dec

The winter GITA GYANA YAGNA of Poojya Guruji Sri Swami Atmanandaji at Mumbai was organized at Vivekananda Auditorium, inside the Ramakrishna Campus in Khar (W), Mumbai, from 22nd Dec to 28th Dec.
The subject matter of the discourse series were Gita Chapter-2 and Mandukya Upanishad, Adwaita Prakarana (Chapter 3 of Karika).

P. Guruji Swami Atmananda Saraswatiji

The 2nd Chapter of Bhagwad Gita is called the Sankhya Yoga and has 72 shlokas. It starts with the despondent Arjuna who because of his indecisiveness and the consequent suffocating grief was completely broken and could not fight. The chapter ends with Arjuna regaining his composure and was asking question about who a perfect person is - the so called Sthita Pragnya. So the 2nd chapter reveals the complete journey from ignorance to knowledge. Bhagwan started after Arjuna specifically requested for knowledge. He said I am your shishya, please enlighten me. The Guru first told him that the truly wise never grief, and all grief is a product of our Moha - baseless conclusions. He starts by telling him that the real truth of me, you and everyone else is imperishable life principle, which transcends this body-mind complex. Those who know this never grieve. Even if we do not know that the self is avinashi yet we should never grieve because that which is born has to die and that which dies is born again. He also reveals another angle of baselessness of grief. The swadharma angle and the Art of Positive Karma - Karma Yoga. All this made Arjuna interested and the chapter ends with the description of the man of knowledge. It is an awesome chapter, and was dealt also in an awesome way. 

Adwaita Prakarana deals with revealing how non-duality alone is real and how to wake to that state.

Hanuman Chalisa Samapan & P. Guruji’s Birthday

१५ दिसंबर 2019 :

६ वर्ष से अनवरत रूप से चल रहे हनुमान चालीसा ज्ञान यज्ञ का अंतिम प्रवचन दि. १५ दिसंबर २०१९ को वेदांत आश्रम, इंदौर में सायंकाल ६.३० बजे से प्रारम्भ हुआ। इस अनुष्ठान में माह के अंतिम रविवार को हनुमान चालीसा की एक चौपाई पर विस्तृत चिंतन होता था. कुल मिलकर चालीसा पर ७३ प्रवचन हुए। ये समस्त प्रवचन वेबसाइट पर सभी के लिए उपलब्ध हैं।

हर बार की तरह सर्व प्रथम दास बगीची रामायण मंडली द्वारा सुन्दर भजन प्रस्तुत करे गए, और फिर सबने हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ किया। तदुपरांत पूज्य गुरूजी श्री स्वामी आत्मानंद जी द्वारा प्रवचन ३९वीं से प्रारम्भ होकर अंतिम दोहे तक चला। अंतमें हनुमानजी की आरती और प्रसाद वितरण हुआ। पूज्य गुरूजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में स्वल्पाहार का आयोजन किया गया था। सब भक्तों ने धन्यता से प्रसाद ग्रहण किया।

ॐ तत्सत्

Gita Jayanti @ Gita Bhawan

GITA JAYANTI @ GITA BHAWAN

यज्ञ दान तप: कर्म पावनानि मनीषिणाम्।।

इंदौर में स्थित गीता भवन में 62 वा गीता जयंती महोत्सव मनाया गया। इस समारोह में 7 नवंबर को पूज्य गुरुजी के प्रवचन का आयोजन हुआ।

पूज्य गुरुजी ने प्रवचन में यज्ञ दान तप की महिमा बताते हुए कहा कि हर मनुष्य के हृदय में भगवान विरजामन है तथा हर मनुष्य एक बांसुरी की तरह है। किन्तु मन की मलिनता की वजह से भगवान का मधुर संगीत इस बांसुरी से निसृत नही हो पाता है। इसलिए मन को निर्मल करने के लिए साधना करनी पड़ती है | इसके लिए भगवान स्वयं गीता के १८ वे अध्याय में बताते हैं कि यज्ञ दान तप: कर्म पावनानि मनीषिणाम्।अर्थात् यज्ञ दान और तप – ये तीनों मनुष्य को पवित्र करते हैं।  

भगवान बताते हैं कि हर कार्य को यज्ञ बनाया जा सकता है।  हर कार्य को यज्ञ बनाया जा सकता है, यहाँतक कि युध्द को भी यज्ञ बनाया जा सकता है। यज्ञभाव क्या होता है? जैसे हवन में अग्निरूपसे परमात्मा का आवाहन करके उनके प्रति वो अर्पित करते हैं, जो उन्हें प्रसन्न करता है। वैसे ही जहाँ हम भगवान की खुशी के लिए कार्य करते है, उन पर भरोसा रख कर वो कार्य करे, जो उन्हें प्रसन्न करें।
हमारे हर कार्य स्वकेन्द्रित व अपनी कोई चिंता से नही किन्तु अन्य की खुशी के लिए हो तो वही यज्ञ बन जाता है। यज्ञभाव में पूर्ण रूपसे निष्काम होते है। मन में चिंता होना अपने अंदर अपेक्षा का सूचक है, यही मन की मलिनता है।
तप स्वयं को भोगवृत्ति से अलग करते है। कोई न कोई व्रत लेना ही तपस्या होती है। यज्ञ दान और तप ही मन को निर्मल करता है, तब हृदय से मुरली का मधुर संगीत निकलता है। हम भी ऐसे ही एक बाँसुरी बन जाये, वही कल्याणकारी है।